कर्बला की धरती से इंसानियत का पैग़ाम, वर्धा में 10 मोहर्रम पर मोहब्बत का शरबत बांटा गया

Sun 06-Jul-2025,08:02 AM IST -07:00
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अरबाज पठाण ( वर्धा )

वर्धा। मोहर्रम के पवित्र महीने में इंसानियत, सब्र और बलिदान की याद को ताज़ा करने के लिए स्टेशन फेल स्थित नूरी मस्जिद के पास 10 मोहर्रम के दिन शरबत और नियाज़ वितरण का आयोजन किया गया। इस मौके पर बड़ी संख्या में लोगों ने हिस्सा लिया और कर्बला की घटना को याद करते हुए राहगीरों व श्रद्धालुओं को शरबत पिलाकर मानवता और भाईचारे का संदेश दिया।

क्या है कर्बला का वाक़या और शरबत बाँटने की परंपरा का महत्व?

मोहर्रम इस्लामिक कैलेंडर का पहला महीना है और 10 मोहर्रम, जिसे आशूरा कहते हैं, इस्लाम के इतिहास का सबसे दर्दनाक दिन माना जाता है। इस दिन इराक के कर्बला मैदान में पैगंबर मोहम्मद ﷺ के नवासे हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम और उनके 72 साथियों ने जुल्म के खिलाफ खड़े होकर अपनी जान कुर्बान कर दी थी।

यज़ीद नामक शासक ने अन्यायपूर्ण शासन को स्वीकार न करने के कारण हुसैन और उनके परिवार पर पानी तक बंद कर दिया था। कई दिन तक भूखे-प्यासे रहकर भी इमाम हुसैन ने सच और इंसाफ का साथ नहीं छोड़ा। आखिरकार 10 मोहर्रम के दिन उन्हें और उनके साथियों को शहीद कर दिया गया।

आज भी मोहर्रम में शरबत और पानी पिलाकर लोग कर्बला के प्यासे शहीदों की याद में इंसानियत की सेवा करते हैं। यह परंपरा दिखाती है कि दूसरों की प्यास बुझाना और दुख में साथ देना इस दिन का असली पैग़ाम है।

आयोजन में कई लोगों का योगदान

इस कार्यक्रम को सफल बनाने में हाजी सोहराब तुरक, हाजी शोएब, मोहम्मद जावेद, शेख आरिफ, शेख इमरान, शेख रिजवान, फैजान (पप्पू), मोईन चौहान, ताहिर शेख, अज्जू, अयान, अजमत, राहिल, असद, अल्तमश, अरशान और जमील का महत्वपूर्ण योगदान रहा।

आयोजकों ने बताया कि मोहर्रम हमें सिखाता है कि सत्य और न्याय के रास्ते पर कितनी भी कठिनाई क्यों न हो, डटे रहना चाहिए। और लोगों की सेवा, मदद करना ही असली इंसानियत है।